मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

11, पवित्रा अग्रवाल व उनकी लघुकथाएं:


पाठकों को बिना किसी भेदभाव के अच्छी लघुकथाओं व लघुकथाकारों से रूबरू कराने के क्रम में हम इस बार श्रीमती  पवित्रा अग्रवाल   की लघुकथाएं उनके फोटो, परिचय के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है पाठकों को श्रीमती  पवित्रा  की लघुकथाओं व उनके बारे में जानकर अच्छा लगेगा।-किशोर श्रीवास्तव 


            पवित्रा अग्रवाल 

परिचय     
जन्म-        17 मईकासगंज, उ.प्र.
शिक्षा -         एम.ए. -- हिन्दी, समाजशास्त्र ,बी एड ( आगरा विश्व विद्यालय  )
पति -   लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, - व्यवसायी व लेखक ( कहानी,कविता,व्यंग्य ,लघु     कथा,समीक्षा,आदि )
पुत्र -             आइ बी एम  में
पुत्री -             डेल   में
मुख्य विधासाक्षात्कार,कहानी,बाल कहानी,लघु कथा आदि
प्रकाशन-    नीहारिका, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्मयुग, कादम्बिनी, उत्तरप्रदेश, राष्ट्रधर्म , सरिता, गृहशोभा, मनोरमा, मेरी सहेली, हिन्दी मिलाप, पुष्पक आदि में रचनाएं प्रकाशित कई कहानियाँ पुरस्कृत, आकाशवाणी व दूरदर्शन से रचनाएँ प्रसारित ।
बाल कहानियाँ-    पराग,चंपक,बालहंस,बालभारती,बच्चों का देश ,बाल वाटिका,देवपुत्र,राष्ट्रघर्म आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित। कई कहानियाँ संकलित ।
लघु कथाएं -       हंस,  कथादेश,  कादम्बिनी, मनोरमा, तारिका, वीणा, सरस्वती सुमन, सादर    इंडिया, पंजाबी संस्कृति, हम सब साथ साथ, अक्षर शिल्पी, अक्षर खबर, प्रेरणा अंशु, आरोह अवरोह आदि में प्रकाशित ।
पहली कहानी १९७४ में नीहारिका में प्रकाशित हुई थी, 1978 में शादी के बाद हैदराबाद आ गई थी... तब से हेदराबाद  में  स्थाई निवास
नई जिम्मेदारियों के बीच 12 वर्ष कलम मौन रही। 1991 से लेखन पुन:शुरू हुआ, तब से निरन्तरता बनी हुई है। कुछ रचनाओं का तेलगू, पंजाबी, मराठी में अनुवाद।
पुस्तक-     "पहला कदम'  (कहानी संग्रह )1997, "उजाले दूर नहीं' (कहानी संग्रह
पुरस्कार-     कहानी संग्रह पर 1998 में "यमुना बाई हिन्दी लेखक पुरस्कार', 2000 में "साहित्य गरिमा पुरस्कार'
    
सम्पर्क सूत्र -      
 घरोंदा, 4-7-126 ,इसामियां बाजार, हैदराबाद-500027 मोबाइल- 09393385447


लघुकथाएं:

                                               काहे का मरद

     

कामवाली के घर मे घुसते ही मै ने कहा-"कमलम्मा तुम आज सात दिन बाद आई हो इतनी बार कहा है कि जब डुम्मा मारना हो तो बता दिया करो......अरे तुम्हें क्या हुआ माथे पर ये चोट कैसे लगी ? किसी ने मारा क्या ?'
   "
अम्मा हमें और कौन मारेगा ?....हमारी किस्मत में तो अपने मरद से ही मार खाना लिखा।'
   "
दारू के लिए फिर पैसे मॉग रहा था ?'
   "
दारू के लिए पैसे न देने पर मार खाना तो हमारे लिए कोई नई बात नही अम्मा लेकिन अब वो हमें ये भी बताने लगा कि हम किस घर में काम करें किस घर का छोड दें।'
  "
मतलब ?'
  "
परसों हम जो नया घर पकड़े न बोलता वो काम नको कर।'
  "
वहॉ से तो तुम्हें अच्छी पगार मिल रही है....छोडने को क्यों कह रहा है ?'
    "
बोलता वे लोगॉ हम से छोटी जात के हैं....उनका काम नको कर ...हमारी जात वाले लोगॉ फजीता करते ।'
  "
उसको कैसे पता लगा कि वो छोटी जाति के हैं ?'
 "
अरे अम्मा दूर बैठ के भी दुनियॉ भर की खबर रखता ...हम सब काम वाले एक ही इलाके मे रहते...हमारे साथ वाली कोई बोल दी होगी।'
  "
फिर क्या हुआ ?'
  "
हम बोले वो अम्मा महीने का हजार देती। तू हम को हर महीना हजार ला के दे तो वो काम छोड देती....बस इसी बात पर बोत मारा अम्मा।'
   "
फिर काम छोड दिया तुमने ?'
    "
नको अम्मा ..बडी मुश्किल से अच्छा काम मिलता ....एसे छोडने लगी तो पेट को रोटी कौन डालता ? ...जहॉ अच्छी पगार मिले वहॉ काम करती। अब तक बोत मार खायी, अब मार के देखे ..हाथॉ तोड देती। वैसे भी हम वो घर छोड दिये। हमारे अम्मा, अन्ना(भाइ) यहॉ नजदीक ही रहते ...अभी उनके साथ रह रई।


                                  समाज सेवा

   

सुधा ने अपने पति से कहा"-" देखना इस अखवार में मैडम का फोटो क्यों छपा है ?'
 "
तुम जानती हो इन मैडम को ?'
 "
हाँ इन के सिलाई कढ़ाई सेंन्टर पर ही तो मैं काम करती थी।'
 "
अच्छा तो वो यही मैडम हैं।..इन्होंने समाज में गरीब महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए बहुत काम किया है, इस लिए उनका सम्मान किया गया है।'
 "
जरा पढ़ कर तो बताना  कि इन्हों ने महिलाओं के लिए ऐसा क्या किया है जिसकी वजह से उनका  सम्मान किया गया है और वो समाचार फोटो के साथ अखवार में छपा है।'
 "
इस में लिखा है गरीब महिलाओं को रोजगार देने के लिए इन्होंने शहर में सबसे पहला सिलाई  कढ़ाई सेन्टर खोला था।'
 "
हाँ सेन्टर तो इन्होंने खोला था और बहुत सी महिलाएं उस में काम भी करती थीं पर उनका उद्देश्य  महिलाओं की हालत सुधारना या उन्हें रोजगार देना नहीं था।''
 "
तो उनका उद्देश्य क्या था?''
 "
उनका उद्देश्य था पैसा कमाना। हम सब से सस्ते दामों पर कढ़ाई करा कर उन्हें ऊँचे दामों पर  बेचना। ... यह मैडम खूब मुनाफा कमाती थीं।''
 "
सभी ऐसा करते हैं.. इसमें बुरा क्या है?''
 "
मुनाफा कमाना बुरी बात नहीं हैं...व्यापार में सभी  कमाते हैं पर उस को समाज सेवा  के रूप  में  भुनाना बेइमानी है।...ऐसे तो फिर हर व्यापारी  समाज सेवी है क्योंकि व्यापार चलाने के लिए उसे नौकर तो रखने ही पड़ते हैं। ''


                                         आस्तिक नास्तिक



 "दादी माँ ,आप भगवान को मानती हैं?' - डौली ने पूछा
 "
ये कैसा प्रश्न है?...तू मुझे रोज मंदिर जाते, पूजा पाठ करते नहीं देखती है क्या?'
 "
हाँ देखती तो हूँ ।... बताइए दादी माँ, कहते हैं जीवन-मृत्यु भगवान के हाथ में है...उनकी इच्छा के बिना संसार में कुछ नहीं हो सकता।"
 "
तूने बिल्कुल ठीक सुना है, बिटिया। उसकी इच्छा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता।'
 "
दादी माँ सुना है कि जोड़ियां भी ऊपर से बन कर आती हैं यानी किसकी शादी किसके साथ होगी, यह पहले से तय होता है।'
 "
हाँ, यह भी सच है...लेकिन आज सुबह सुबह तू मुझसे यह सब क्यों पूँछ रही है? "
 "
ऐसे सवालों को लेकर मन में कुछ उलझन थी जो सुलझ नहीं रही थी।"
 "
अब उलझन सुलझ गई?'
 "
नहीं दादी अब तो और उलझ गई है।"
 "
मुझे बता क्या उलझन है?'
 "
बुआ की शादी के एक महीने बाद ही फूफा जी की मौत हो गई थी पर उनके ससुराल वालों ने उन्हें अशुभ कह कर घर से निकाल दिया था...उसमें बुआ का क्या दोष था? "
 "
यही तो अज्ञानता है बिटिया, उनमें इतनी समझ ही नहीं है कि भगवान की सत्ता को समझ सकें।"
 "
पर दादी आप तो सब समझती हैं फिर भैया की मौत के लिए भाभी को दोषी ठहरा कर उन्हें उनके मॉ-बाप के घर क्यों भेज दिया? "
 
खा जाने वाली आँखों से घूरते हुए- "चुप रह री छोरी, मैं तुझे समझा नहीं सकूँगी।...मुझसे यह सब तेरे बाप ने नहीं पूंछा, तू कौन होती है पूछने वाली ?...नास्तिक कहीं की।'
 "
लेकिन दादी ... "
 "
चुप छोरी,  मेरे मंदिर जाने का समय हो रहा है, मेरा दिमाग मत चाट।"

                                अय्याशी के अड्डे


           
 देवर प्रमोद मिठाई ले कर आए थे ...उनका चेहरा खुशी से दमक रहा था।
 "
काहे की मिठाई है? "
 "
अरे भाभी जी तन्वी को बहुत अच्छी नौकरी मिल गई है।"
 "
कहाँ ? "
 "
डैल में,..शुरू मे ही पंद्रह हजार देंगे।"
 "
अच्छा, बहुत खुशी हुई सुन कर...बधाई। काल सेंटर में लगी है क्या? "
 "
हाँ। "
 "
रात की ड्यूटी रहेगी? "
 "
हाँ ड्यूटी तो रात की ही रहेगी...पर डर की कोई बात नहीं है। कंपनी की गाड़ी लेने व छोड़ने आएगी"  
  "वो तो सभी कॉल सेंन्टर्स में यह व्यवस्था रहती है।"  कहते हुए मुझे तीन चार वर्ष पुरानी बात याद आ गई। मेरी सहेली की बेटी को काल सेंटर में नौकरी मिली थी..मैंने यह बात जब अपने इन्हीं देवर प्रमोद को बताई तो वह बुरा सा मुंह बना कर बोले थे-" अरे भाभी जी काल सैंटर तो अय्याशी के अड्डे होते हैं।"
 "
अय्याशी के अड्डे ' शब्द सुन का मेरा मन आहत हुआ था, मैंने एक तरह से उसे डपटते हुए कहा था-"तुमने भी यह क्या घटिया शब्द स्तेमाल किया है।''
 "
अरे भाभी जी आपकी बेटी तो काल सेंटर में नहीं है, आपको इतना बुरा क्यों लग रहा है? "
 "
मेरी बेटी न सही पर दूसरों की बेटियाँ तो वहाँ काम करती हैं, इस तरह का कमेंन्ट करना अच्छी बात नहीं हैं।
 "
अरे भाभी जी आप नहीं जानती बाहर क्या क्या हो रहा है।"
 
मैं किसी बहस में नहीं उलझना चाहती थी अत: बात समाप्त करते हुए  कहा-" मैं तो बस इतना  जानती हूँ कि अच्छे बुरे लोग सब जगह होते हैं पर इस तरह की टिप्पणी करना अच्छी बात नहीं है।'
 
आज वही प्रमोद अपनी बेटी के काल सेंन्टर में काम मिलने की खुशी में मिठाई बाँट रहे हैं। मन कर रहा था उनसे पूछूँ कि काल सेंटर जब इतने खराब होते हैं तो अपनी बेटी को उसमें काम करने क्यों भेज रहे हैं? " 

11 टिप्‍पणियां:

  1. लेखिका का परिचय और समस्त लघुकथाएं गहरा प्रभाव छोड़ती है.

    आप दोनों का आभार.

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  2. aaj ke samajik privesh me hi janmti kahaniyon se roobru karati laghu kahaaniyan .lekhika se parichay va unki uplabdhiyon ki jankari deti hui post bahut pasand aai.

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  3. आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/847.html
    चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  4. hamare aas pass ke samajik parivesh mai likhi ye sabhi kahaniya , hame sochne ko majboor karti hai dhanyavaad pavitra jii , vese to hum kai patrikao mai aapko padhte rehte hai , aaj yaha dekhkar achcha laga

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