सोमवार, 9 जनवरी 2012

7, सीताराम गुप्ता व उनकी लघुकथाएं:


पाठकों को बिना किसी भेदभाव के अच्छी लघुकथाओं व लघुकथाकारों से रूबरू कराने के क्रम में हम इस बार प्रसिद्ध साहित्यकार श्री सीताराम गुप्ता  की लघुकथाएं उनके फोटो, परिचय के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है पाठकों को श्री गुप्ता  की लघुकथाओं व उनके बारे में जानकर अच्छा लगेगा।-किशोर श्रीवास्तव 


परिचय:

- कार्तिक शुक्ल दसवीं, संवत् 2011 (1954 ई.) को दिल्ली के एक गाँव नांगल ठाकरान में जन्म।
- स्कूली शिक्षा गाँव के विद्यालय से तथा शेष दिल्ली विश्वविद्यालय से। हिन्दी के अतिरिक्त रूसी, उर्दू, फारसी व अरबी भाषाओं का अध्ययन। टी.वी. प्रेज़ेंटेशन में डिप्लोमा।

- कविता संग्रह ‘मेटामॉफ़ोसिस’ तथा मन की शक्ति द्वारा उपचार विषयक पुस्तक ‘मन द्वारा उपचार’ फुल सर्कल द्वारा प्रकाशित।

- नवभारत टाइम्स में कल्पवृक्षध्द स्पीकिंग ट्री में निरंतर स्तंभ लेखन।

- दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, आज समाज, राँची एक्सप्रेस, जनसंदेश टाइम्स, नव.भारत, अजीत समाचार आदि दैनिक समाचार.पत्रों के अतिरिक्त कादम्बिनी, इंद्रप्रस्थ भारती, गगनांचल, समकालीन भारतीय साहित्य, भाषा, संस्कृति, आजकल, योजना, साहित्य अमृत, नवनीत, हिमप्रस्थ, उत्तर प्रदेश, मधुमती, उद्भावना, मकरंद, व्यंग्य.यात्रा, अट्टहास, अहा! ज़िंदगी, नमस्कार, दर्पण, चक्रवाक, सुलभ टाइम्स, दिल्ली, मेरी दिल्ली, पालिका समाचार, भारतीय रेल, इस्पात भाषा भारती, खान संपदा, खनन भारती, वीणा, गुर्जर राष्ट्र वीणा, मेकलसुता, अहल्या, सुगंध, अनुकृति, अनौपचारिका, अविराम, शैल सूत्र, भाषा भारती संवाद, कौशिकी, आर्य जगत्, श्रुतिपथ, सोच विचार, कथा क्रम, पाठ, अक्षरा, प्राची प्रतिभा, सेतु, राष्ट्रसेतु, समाज सेतु, पुरवासी, साहित्य अभियान, प्रेरणा, शब्द शिल्पी, सरस्वती सुमन, सुमन सागर, युमशकैश, भारतवाणी, पुष्पांजलि, नायक भारती, हिन्दी प्रचार वाणी, हिन्दी चेतना, समांतर, केंद्र भारती, वैज्ञानिक, विज्ञान गरिमा सिंधु, श्रेयस्, संस्कारम्, बाल भारती, नंदन, बाल वाणी, बाल सेतु, देवपुत्र, वात्सल्य जगत, वात्सल्य निर्झर, सरल जीवन, अध्यात्म निधि, अध्यात्म अमृत, अध्यात्म योग, योग मंजरी, योग दृष्टि, योग वर्षा, निसर्गाेपचार वार्ता, निरामय जीवन, अक्षय जीवन, मानस चंदन, कल्याण, नेचर एंड वैल्थ, अणुव्रत, पारख प्रकाश, सहज आनंद, समृद्ध सुखी परिवार, विश्व ज्योति, जाह्नवी, सरिता आदि पत्र.पत्रिकाओं में साहित्य तथा भाषा विषयक लेख, व्यंग्य, कथा.साहित्य, निबंध व कविताएँ तथा आध्यात्मिक उपचार, व्यक्तित्व विकास व मनुष्य के संपूर्ण रूपांतरण पर नियमित रूप से रचनाएँ प्रकाशित।

संपर्क: ए डी.106 सी, पीतम पुरा, दिल्ली-110034 मो. 9555622323,011-27313679 Email: srgupta54@yahoo.co.in


डॉक्टर
डॉक्टर अनुपम ने न जाने कितनी बार अपने पेशे की गरिमा का उल्लंघन किया लेकिन जब उन्हें इसके दुष्परिणामों का अहसास हुआ तो इस दुष्कर्म से हमेशा के लिए तौबा कर ली। अब कोई प्रलोभन उन्हें ग़लत कार्य करने के लिए विवश नहीं कर सकता था। लेकिन लोग कब आसानी से टिकने देते हैं। डॉक्टर अनुपम के एक परिचित आए और बोले, ‘‘ डॉक्टर, तुम तो जानते ही हो कि मेरी दो बेटियाँ हैं। माई वाइफ़ इज़ अगेन प्रैग्नेंट और अब हम कोई रिस्क लेना नहीं चाहते इसलिए हमारी मदद करो।’’ डॉक्टर अनुपम ने कहा, ‘‘ देखो ये ग़ैरकानूनी ही नहीं समाज के लिए भी घातक है।’’ ‘‘लेकिन पहले भी तुम अनचाहे गर्भ से छुटकारा दिलवाने में हमारी मदद कर चुके हो।’’ परिचित ने कहा। डॉक्टर अनुपम चुप थे। परिचित ने किंचित गंभीर होते हुए पुनः कहा, ‘‘डॉक्टर, मैं मानता हूँ कि इस काम में रिस्क बहुत बढ़ गया है लेकिन तुम्हें मेरे लिए ये काम करना ही होगा। और पैसों की तुम बिल्कुल चिंता मत करना।’’ डॉक्टर अनुपम अब भी चुप थे लेकिन उनके अंदर बहुत कुछ खौल रहा था जो बाहर से नहीं दिखाई पड़ रहा था। अचानक डॉक्टर अनुपम ने कहा, ‘‘अच्छा तो ठीक है कल ले आना अपनी पत्नी को लेकिन ध्यान रहे किसी को इस बात का पता नहीं चलना चाहिए।’’ परिचित आश्वस्त होकर चला गया। 
     अगले दिन डॉक्टर अनुपम ने जाँच करने के बाद कहा, ‘‘इस बार घबराने की कोई बात नहीं। जैसा तुम चाहते थे वैसा ही है। तुम्हारी पत्नी को भी बार-बार के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी इस बार।’’ यह सुन कर परिचित की जान में जान आ गई। उसके घर में भी सभी के चेहरे खिल उठे। पत्नी की ख़ूब सेवा की जाने लगी। आखिर वो दिन भी आ ही पहुँचा जिसका बेसब्री से इंतज़ार था। पत्नी को निकट के एक अच्छे प्रसूतिगृह में ले जाया गया। डिलीवरी भी जल्दी ही हो गई। लेकिन जैसे ही नर्स ने बाहर आकर सूचना दी सभी घर वालों के तो मानो होश ही डड़ गए। नर्स ने बाहर कहा, ‘‘बधाई हो! बेटी हुई है और बहुत ही सुंदर और स्वस्थ है।’’ परिचित भागे-भागे डॉक्टर अनुपम के पास गए और कहा, ‘‘डॉक्टर, तुमने मुझे धोखा दिया है। मेरे साथ दग़ाबाज़ी की है। मेरे पैसे भी हड़प लिए और काम भी नहीं किया। एक डॉक्टर होकर तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये था।’’ ‘‘हाँ मैं सचमुच एक डॉक्टर हो गया था तभी मैंने ऐसा किया।’’ ये कह कर डॉक्टर अनुपम ने परिचित के कंधे पर हाथ रखने की कोशिश की लेकिन परिचित डॉक्टर अनुपम का हाथ झटक कर जिस तेजी से अंदर आया था उसी तेजी से बाहर निकल गया।
चीरहरण

पार्टी लॉन मेहमानों से खचाखच भरा था। इक्का-दुक्का लोग वापस जा रहे थे तो नए लोग भी अंदर आ रहे थे। गुप्ता दंपत्ति आने वाले मेहमानों का स्वागत करने तथा जाने वालों को विदाई देने के लिए समारोह स्थल के मुख्य द्वार पर डटे हुए थे। जैसे ही कोई मेहमान शगुन का लिफाफा बढ़ाता मिस्टर गुप्ता मिसेज़ गुप्ता की तरफ इशारा कर देते। मिसेज़ गुप्ता शगुन के इन लिफाफों को एहतियात से एक बैग में सहेज कर रखती जा रही थी। जब बैग भर गया तो उसने शेष लिफाफों को अपने बाएँ हाथ में पकड़ लिया। थोड़ी देर बाद जाने वाले मेहमानों की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी तो मिसेज़ गुप्ता की व्यस्तता भी बढ़ गई। कोई आठ-दस मेहमान उनको धेरे खड़े थे तभी सुनंदा वहाँ पहुँची। वह थोड़ा हटकर इंतज़ार करने लगी ताकि मेहमान कम हों तो वो भी गुप्ता दंपति को मुबारकबाद दे और शगुन का लिफाफा भेंट करे लेकिन तभी उसे मिसेज़ गुप्ता की आवाज़ सुनाई दी, ‘‘सुनंदा, भई! खाना-वाना तो ठीक से लिया न?’’ ‘‘हाँ, बहुत अच्छी तरह,’’ ये कहते हुए सुनंदा मिसेज़ गुप्ता के निकट आई और शगुन का लिफाफा मिसेज़ गुप्ता की ओर बढ़ाया।
    मेहमान मिसेज़ गुप्ता की सुनंदा के प्रति इतनी आत्मीयता देखकर ईर्ष्यालु हो उठे। तभी मिसेज़ गुप्ता का कोमल स्वर सुनाई पड़ा, ‘‘देख सुनंदा अपने खास रिश्तेदारों और दोस्तों को छोड़कर किसी से भी मैने सौ रुपये से ज़्यादा नहीं लिए हैं। तुमसे भी ज़्यादा बिल्कुल नहीं लूँगी’’ और सभी लोगों की उपस्थिति में उसका लिफाफा खोलने का उपक्रम करने लगी। सुनंदा ने हाथ बढ़ाकर लिफाफा खोलने से मना करने का संकेत करते हुए कहा कि ज़्यादा नहीं बस प्रतीक मात्र हैं लेकिन मिसेज़ गुप्ता ने सबके सामने ही फुर्ती से लिफाफा फाड़ कर उसमें रखे पचास रुपये के नोट को बाहर निकाल लिया। नोट को ध्यान से देखते हुए और परोक्ष रूप से आसपास के लोगो को भी दिखाते हुए मिसेज़ गुप्ता ने सबको सुनाते हुए कहा, ‘‘हाँ पचास चलेंगे लेकिन मैं सौ से ज़्यादा बिल्कुल नहीं लेती।’’ सुनंदा जल्दी से जल्दी बाहर निकल जाना चाहती थी लेकिन उसके क़दम उसका साथ नहीं दे रहे थे। उसका सारा ध्यान महाभारत के उस दृश्य पर केंद्रित हो गया जहाँ भरी सभा में कौरवों द्वारा द्रौपदी को निर्वसना करने का प्रयास किया जा रहा था और वह अपनी विवशता पर आँसू बहाने के सिवाय और कुछ नहीं कर पा रही थी।

11 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sunder laghukatha aapne samaj ki baton ko bahut sunder tarike se likha hai
    aapko badhai
    saader
    rachana

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  2. dono laghu katha bahut sashakt aur hamare shikshit samaaj ki maansikta ka darpan hai. shubhkaamnaayen.

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  3. Dono kathayen laghu hone ke karan un logon dwara bhi padhi jayengi, jinake pas katha-upanyas padhane ka samanyataya samaya nahin hota, yaa jinaki unamen ruchi nahi hoti. unamen sone men suhage ki tarah sandesh bhi hai. sundar evam prabhawotpadak laghu kathaon ke liye Gupata ji ko badhayee, shubhkamanayen.
    Shiv Shankar

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  4. gupta ji badhaee ke patr hain. dono laghukathayen saral v sahaj roop me tathakathit shikshit samaj ki ochi mansikta ko ughad deti hain ..bhavpaksh sudradh v kalapaksh sudol hai .. pun badhaee ... kishore ji aapko bhi badhaee itna accha blog banane v sashakt sahitykaron se sabhi ko rubru karane hetu

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  5. सार्थक सोच सामने रखती लघुकथा 'डॉक्टर ' और मध्यम वर्गीय मानसिकता को उघाड़ती 'चीरहरण'दोनों ही लघुकथाएं मन में हलचल पैदा करती हैं. प्रश्नाकुल करना रचनात्मक कृति का प्रमुख लक्षण है. यह रचनाएँ अपना धर्म निभाती है.
    बधाई.

    अशोक गुप्ता

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  6. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें

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