सोमवार, 26 दिसंबर 2011

6, कृष्ण कुमार यादव व उनकी लघुकथाएं:

पाठकों को बिना किसी भेदभाव के अच्छी लघुकथाओं व लघुकथाकारों से रूबरू कराने के क्रम में हम इस बार प्रसिद्ध साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव की लघुकथाएं उनके फोटो, परिचय के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है पाठकों को श्री यादव की लघुकथाओं व उनके बारे में जानकर अच्छा लगेगा।-किशोर श्रीवास्तव 

परिचयः 
 10 अगस्त, 1977 को तहबरपुर, आजमगढ़ (उ. प्र.) में जन्म. आरंभिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, जीयनपुर-आजमगढ़ में एवं तत्पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वर्ष 1999 में राजनीति शास्त्र में परास्नातक. वर्ष 2001 में भारत की प्रतिष्ठित सिविल सेवामें चयन। सम्प्रति भारतीय डाक सेवाके अधिकारी। सूरत, लखनऊ और कानपुर में नियुक्ति के पश्चात फिलहाल अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक पद पर आसीन।
      प्रशासन के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में भी प्रवृत्त। कविता, कहानी, लेख, लघुकथा, हाइकू, व्यंग्य एवं बाल कविता इत्यादि विधाओं में लेखन. देश की प्राय: अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं - समकालीन भारतीय साहित्य, नया ज्ञानोदय, कादम्बिनी, सरिता, नवनीत, वर्तमान साहित्य, आजकल, इन्द्रप्रस्थ भारतीय, उत्तर प्रदेश, मधुमती, हरिगंधा, हिमप्रस्थ, गिरिराज, पंजाब सौरभ, अकार, अक्षर पर्व, अक्षर शिल्पी, युग तेवर, हम सब साथ साथ, शेष, अक्सर, अलाव, इरावती, उन्नयन, भारत-एशियाई साहित्य, दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, स्वतंत्र भारत, अजीत समाचार, लोकायत, शुक्रवार, इण्डिया न्यूज, द सण्डे इण्डियन, छपते-छपते, प्रगतिशील आकल्प, युगीन काव्या, आधारशिला, साहिती सारिका, परती पलार, वीणा, पांडुलिपि, समय के साखी, नये पाठक, सुखनवर, प्रगति वार्ता, प्रतिश्रुति, झंकृति, तटस्थ, मसिकागद, शुभ तारिका, सनद, चक्रवाक, कथाचक्र, नव निकष, हरसिंगार, अभिनव कदम, सबके दावेदार, शिवम्, लोक गंगा, आकंठ, प्रेरणा, सरस्वती सुमन, संयोग साहित्य, शब्द, योजना, डाक पत्रिका, भारतीय रेल, अभिनव, प्रयास, अभिनव प्रसंगवश, अभिनव प्रत्यक्ष, समर लोक, शोध दिशा, अपरिहार्य, संवदिया, वर्तिका, कौशिकी, अनंतिम, सार्थक, कश्फ, उदंती, लघुकथा अभिव्यक्ति, गोलकोंडा दर्पण, संकल्य, प्रसंगम, पुष्पक, दक्षिण भारत, केरल ज्योति, द्वीप लहरी, युद्धरत आम आदमी, बयान, हाशिये की आवाज, अम्बेडकर इन इण्डिया, दलित साहित्य वार्षिकी, आदिवासी सत्ता, आश्वस्त, नारी अस्मिता, बाल वाटिका, बाल प्रहरी, बाल साहित्य समीक्षा इत्यादि में रचनाओं का प्रकशन.
      इंटरनेट पर विभिन्न वेब पत्रिकाओं-अनुभूति, अभिव्यक्ति, सृजनगाथा, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, लेखनी, कृत्या, रचनाकार, हिन्दी नेस्ट, हमारी वाणी, लिटरेचर इंडिया, कलायन इत्यादि इत्यादि सहित ब्लॉग पर रचनाओं का निरंतर प्रकाशन. व्यक्तिश: 'शब्द-सृजन की ओर' (www.kkyadav.blogspot.com/) और 'डाकिया डाक लाया'(www.dakbabu.blogspot.com/) एवं युगल रूप में सप्तरंगी प्रेम,(www.saptrangiprem.blogspot.com/) उत्सव के रंग (www.utsavkerang.blogspot.com/) और बाल-दुनिया (www.balduniya.blogspot.com/) ब्लॉग का सञ्चालन. इंटरनेट पर 'कविता कोश' में भी कविताएँ संकलित. 50 से अधिक पुस्तकों/संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित. आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर व पोर्टब्लेयर, Red FM कानपुर और दूरदर्शन पर कविताओं, लेख, वार्ता और साक्षात्कार का प्रसारण.
अब तक कुल 5 कृतियाँ प्रकाशित- 'अभिलाषा' (काव्य-संग्रह,2005) 'अभिव्यक्तियों के बहाने' 'अनुभूतियाँ और विमर्श' (निबंध-संग्रह, 2006 2007), 'India Post : 150 Glorious Years' (2006) एवं 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' . व्यक्तित्व-कृतित्व पर 'बाल साहित्य समीक्षा' (सं. डा. राष्ट्रबंधु, कानपुर, सितम्बर 2007) और 'गुफ्तगू' (सं. मो. इम्तियाज़ गाज़ी, इलाहाबाद, मार्च 2008) पत्रिकाओं द्वारा विशेषांक जारी. व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक 'बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव' (सं0- दुर्गाचरण मिश्र, 2009) प्रकाशित. सिद्धांत: Doctrine (कानपुर) व संचार बुलेटिन (लखनऊ) अंतराष्ट्रीय शोध जर्नल में संरक्षक व परामर्श सहयोग। साहित्य सम्पर्क’ (कानपुर) पत्रिका में सम्पादन सहयोग। सरस्वती सुमन‘ (देहरादून) पत्रिका के लघु-कथा विशेषांक (जुलाई-सितम्बर, 2011) का संपादन। विभिन्न स्मारिकाओं का संपादन।
      विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त। अभिरूचियों में रचनात्मक लेखन व अध्ययन, चिंतन, ब्लागिंग, फिलेटली, पर्यटन इत्यादि शामिल.
बकौल पद्मभूषण गोपाल दास 'नीरज' - ‘‘ श्री कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरन्तर बेचैन रहता है। उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व सन्तुलन है। वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ कवि हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षडयन्त्रों और पाखण्डों का बड़ी मार्मिकता के साथ उद्घाटन करते हैं।’’
संपर्क:  कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवा, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101
email: kkyadav.y@rediffmail.com
Blogs: www.kkyadav.blogspot.com, www.dakbabu.blogspot.com

लघुकथाएं:

प्यार का अंजाम
      हर में चारों तरफ दंगा फैल गया था।
”......मारो.....मारो....बचाओ...बचाओकी आर्तनाद चीखें सुनायी दे रही थीं।
एक आवाज उभरी- ‘‘मार डालो इन हिन्दुओं को। इनके लड़के ने हमारी लड़की को भगाकर उसको नापाक किया है।’’
      दूसरी आवाज उभरी- ‘‘छोड़ना नहीं इन मुसलमानों को। इनकी लड़की ने हमारे लड़के को बहला-फुसलाकर उसका धर्म भ्रष्ट कर दिया है।’’
ऐसी ही न जाने कितनी आवाजें आतीं और हर आवाज के साथ चारों तरफ खून का फव्वारा फूट पड़ता।
      इन सबसे बेपरवाह, मंदिर के कोटर के भीतर बैठा कबूतर उड़ा और सामने स्थित मस्जिद की दीवार पर बैठी कबूतरी के साथ चोंच मिलाकर गुटरगूं-गुटरगूं करने लगा।
      इस जगत का विधाता अपने ही बनाये दो प्राणियों के प्यार का अंजाम देख रहा था और खामोश था......!!!

रोशनी
      मिट्टी का दीया खामोशी से कोने में आलोकित हो रहा था कि बल्ब ने हँसते हुए पूछा- तुम्हारे जलने का क्या औचित्य ?“

     
दीया खामोश रहा, मुस्कुराता रहा।

     
बल्ब ने फिर कहा- मेरे प्रकाश की चकाचैंध के सामने हर कोई नतमस्तक है, फिर तुम्हारी क्या बिसात?“

     
दीया फिर भी खामोश रहा।

     
बल्ब को बहुत तेज़ गुस्सा आया। उसने कहा- ‘‘लगता है तुम्हें मुझसे अपने अस्तित्व पर खतरा महसूस हो रहा है, इसीलिए खामोश हो।“ .......

     
अचानक बाहर ज़ोर की बिजली कौंधी और तेज़ हवाओं के साथ पानी बरसने लगा। इसी के साथ बिजली गुल हो गई और बल्ब की रोशनी भी खत्म हो गई। पर दीये की लौ अभी भी कोने में आलोकित हो रही थी। दीया मुस्कुरा रहा था और बल्ब सामने की दीवार पर बेजान-सा लटका था।

20 टिप्‍पणियां:

  1. k.k.yadav ji bhoori-bhoori prashansha ke patra hai. satya ko behad khubsurati se avam nape-tule shabdon me udghatit kiya hai.. badhaee...

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  2. कृष्ण कुमार जी के संपादन में जारी 'सरस्वती-सुमन' पत्रिका का ऐतिहासिक लघु-कथा विशेषांक पढ़ा था. अब यहाँ उनकी दो सारगर्भित लघुकथाएं..वाकई दोनों में संवेदना देखते बनती है.

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  3. पहली लघुकथा तो मुझे ज्यादा अच्छी लगी. इससे तो समाज के लोगों को सीख लेनी चाहिए. आजकल लघु कथाओं के नाम पर कुछ भी कम-शब्दों में लिखा जा रहा है. ऐसे में के.के. जी की लघुकथाएं बेहतरीन हैं.

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  4. कृष्ण कुमार जी की लघु-कथाये अक्सर पत्र-पत्रिकाओं में पढने को मिलती रहती हैं, यहाँ भी पढना सुखद लगा. दोनों लघु -कथाओं की विषय वस्तु सामयिक है.

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  5. एक बात तो कहना भूल ही गया, लघु-कथाओं के साथ लगे चित्र भी खूबसूरत हैं. इन चित्रों के चित्रकार का नाम भी साथ में दें तो अति-उत्तम. फ़िलहाल मेरी तरफ से उन चित्रकार महोदय को बधाई.

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  6. दोनों ही लघु कथा ...अपने आप में पूर्ण अर्थ समेटे हुए हैं ...आभार

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  7. BAHUT HI SUNDER LAGHUKATHAYEN HAI
    BAHUT KUCHH KAHTI
    BADHAI
    RACHANA

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  8. लघुकथाओं का यह ब्लाग पसंद करने के लिए आप सबका शुक्रिया। इसके लिए हमें आप सबकी बेहतरीन लघुकथाओं की सदैव प्रतीक्षा रहेगी। भाई रत्नेश जी, इसमें दिये गए चित्र मेरे द्वारा बनाएं हुए हैं। इनमें नीचे मेरे हस्ताक्षर रहते हैं। शायद कुछेक में छुट गए होंगे। फिलहाल, तारीफ और हौसला आफजाई के लिए आपका शुक्रिया।

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  9. मेरी लघुकथाओं के प्रकाशन के लिए श्री किशोर श्रीवास्तव जी का बहुत-बहुत धन्यवाद. किशोर जी का यह प्रयास अनूठा और सराहनीय है. वाकई कम ही दिनों में यह ब्लॉग अपना एक अच्छा मुकाम बनाने की ओर अग्रसर है..बधाई !

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  10. आप सभी के प्रोत्साहन और स्नेह के लिए विनम्रतापूर्वक आभार. यह प्रोत्साहन ही लिखने की प्रेरणा देता है और निरंतरता भी. नव वर्ष-2012 की शुभकामनायें...!!

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  11. कुछ पाठक मित्रों ने यहां प्रतिक्रिया न दर्ज़ हो पाने की विवशता के साथ श्री के. के. यादव की लघुकथाओं पर सीधे मेरे ईमेल पर प्रतिक्रियायें भेजी हैं और अनुरोध किया है कि उनकी प्रतिक्रिया को इस ब्लाग पर डाल दिया जाए सो मैं यहां पर उनकी प्रतिक्रिया दे रहा हूं।

    - टिप्पणी नहीं जा रही , इसलिए आपको भेज रही हूँ | उस साईट पर डाल दें तो आभारी होउंगी |
    दोनों ही लघुकथाएं बहुत अच्छी लगीं | सारगर्भित और अपने सन्देश को पाठकों तक पहुचाने में सक्षम |

    -ILA PRASAD, ila_prasad1@yahoo.com

    - लघुकथायें तो के. के. यादवजी की अच्छी होती ही हैं किशॊर जी का प्रस्तुतीकरण भी सराहनीय है|फिर चित्रों का क्या कहना| रचनायें भेजते रहें आपत्ति कैसे हो सकती है जिसमें आप जुड़े हो‍| यादवजी के पेज पर प्रतिक्रिया कंप्यूटर में कम अक्ली होने से नहीं भेज पा रहे हैं| - प्रभुदयाल श्रीवास्तव, छिंदवाड़ा

    - O.K. Kishore ji, laghu kathon ka sansar blog mujhse open nahin ho paaya,lekin main ruchi rakhta hun aur awashya dehne ki lalak hamesha bani rahti hai.Ap yaad karte hain to achha lagta hai aur kuchh karne ki chahat umra ki swabhavik lachari ko us chahat se chhoti bana deti hai..Ap ke mangal bhavishya ki kamnaon sahit.
    ap ka apna,
    - RAGHUNATH MISRA

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  12. ये तो मेरा पापा जी की लघुकथाएं हैं. किशोर अंकल जी ने इन्हें खूब सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है.

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  13. अक्षिता बेटे, प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद! आप भाग्यशाली हैं जो आपको श्री के. के. यादव जैसे पापा मिले हैं और श्री के. के. यादव जी इसलिए भाग्यशाली हैं क्योंकि उन्हें आप जैसी बिटिया मिली है और हम सब इसलिए क्योंकि हमें आप जैसे प्रतिभाशाली व अपने जैसे लोग मिले हैं।

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  14. k k yadav ji ko unaki achchi laghu kathao aur kishor ji aapko sundar chitro ke liye badhai.

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  15. अच्‍छा परिचय।
    बेहतरीन कहानियां।

    कहानियों में गजब का संदेश।

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  16. Shubhkamnayen .

    भारतीय संस्कृति की तरह ही विश्व संस्कृति भी बड़ी अद्भुत है।

    http://aryabhojan.blogspot.com/2012/01/vegetarianism.html

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  17. कृष्ण कुमार जी को तो हर पल पढ़ती रहती हूँ..यहाँ भी..बधाई.

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  18. यादवजी हिंदुस्तान की हर पत्रिका में मिल जाते हैं| आपकी लेखन क्षमता को प्रणाम| इन अच्छी लघुकथाओं के लिये बधाई

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