पाठकों को बिना किसी भेदभाव के अच्छी लघुकथाओं व लघुकथाकारों से रूबरू कराने के क्रम में हम इस बार प्रसिद्ध साहित्यकार श्री दिलबाग विर्क की लघुकथाएं उनके फोटो, परिचय के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है पाठकों को श्री दिलबाग की लघुकथाओं व उनके बारे में जानकर अच्छा लगेगा।-किशोर श्रीवास्तव
नाम/पता-दिलबाग विर्क
गाँव- मसीतां, डबवाली, सिरसा , हरियाणा- 125104
मोबाईल- 9541521947 email- dilbagvirk23@gmail.com
व्यवसाय- अध्यापन (प्रवक्ता-हिंदी)
प्रकाशन- दो पुस्तकें प्रकाशित
1. चंद आँसू चंद अल्फाज (अग़ज़लें)
2. निर्णय के क्षण ( हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित कविता संग्रह). इनके अलावा तेरह संकलनों में हिस्सेदारी, शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
ब्लॉग- साहित्य सुरभि http://sahityasurbhi.blogspot.com इधर-उधर http://ds-virk.blogspot.com VIRK'S VIEW http://dsvirk.blogspot.com SQUARE CUT http://dilbagvirk.blogspot.com
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लघुकथाएं:
स्वार्थ का पाठ
'' वीरू को लेकर कहाँ गए हैं ? ''- सरला के भतीजे ने उससे पूछा.
वीरू नाम है बछड़े का. ये नामकरण भी उसी ने किया है. इसके पीछे उसका तर्क है जब हम सबका नाम है तो बछड़े का भी होना चाहिए. आदमियों, पशुओं, पक्षियों सबसे अपनत्व का भाव बच्चों का ही काम है वरना हम तो...
'' बाहर कहीं दूर छोड़ने गए हैं. ''- सरला ने उत्तर दिया.
'' तो क्या सोना ( उसी के द्वारा दिया गया बछिया का नाम ) को भी छोडकर आएँगे.- उसने नया प्रश्न दागा.
'' नहीं. ''
'' क्यों सोना को क्यों नहीं ?''
'' वह बड़ी होकर गाय बनेगी, दूध देगी. ''
'' और वीरू ?''
'' वह बड़ा होकर बैल बनता. खेतों में अब ट्रेक्टर हैं, बैलों की जरूरत नहीं, इसलिए वह हमारे किसी काम का नहीं था. ''
'' जो काम का नहीं होता, क्या उसे बाहर छोड़ देते हैं ?''
'' हाँ. '' - सरला ने बात से पीछा छुडवाने की कोशिश करते हुए संक्षिप्त उत्तर दिया.
'' जब हम काम के नहीं रहेंगे तब हमें भी बाहर छोड़ दिया जाएगा. '' - एक और घातक
प्रश्न सरला के सामने था. उसके इस प्रश्न का कोई उत्तर उसके पास नहीं था. हाँ, इतना अहसास तो उसे हो ही चुका था कि हमारे कृत्य ही बच्चों को स्वार्थ का पहला पाठ पढ़ा देते हैं.
'' बाहर कहीं दूर छोड़ने गए हैं. ''- सरला ने उत्तर दिया.
'' तो क्या सोना ( उसी के द्वारा दिया गया बछिया का नाम ) को भी छोडकर आएँगे.- उसने नया प्रश्न दागा.
'' नहीं. ''
'' क्यों सोना को क्यों नहीं ?''
'' वह बड़ी होकर गाय बनेगी, दूध देगी. ''
'' और वीरू ?''
'' वह बड़ा होकर बैल बनता. खेतों में अब ट्रेक्टर हैं, बैलों की जरूरत नहीं, इसलिए वह हमारे किसी काम का नहीं था. ''
'' जो काम का नहीं होता, क्या उसे बाहर छोड़ देते हैं ?''
'' हाँ. '' - सरला ने बात से पीछा छुडवाने की कोशिश करते हुए संक्षिप्त उत्तर दिया.
'' जब हम काम के नहीं रहेंगे तब हमें भी बाहर छोड़ दिया जाएगा. '' - एक और घातक
प्रश्न सरला के सामने था. उसके इस प्रश्न का कोई उत्तर उसके पास नहीं था. हाँ, इतना अहसास तो उसे हो ही चुका था कि हमारे कृत्य ही बच्चों को स्वार्थ का पहला पाठ पढ़ा देते हैं.
गरीबी
'अरे कल्लू मजदूरी पर चलेगा' - मैंने कल्लू से पूछा, जो अपने झोंपड़े के आगे
अलाव पर तप रहा था. वैसे आज ठंड कोई ज्यादा नहीं थी. हाँ, सुब्ह-सुब्ह जो ठंडक
फरवरी के महीने में होती है, वह जरूर थी.
कल्लू ने मेरी ओर गौर से देखा और कहा- ' अभी बताते हैं साहिब' और इतना कहकर वह खड़ा हो गया और झोंपड़े के दरवाजे पर जाकर आवाज दी- ' अरे मुनिया की माँ, घर में राशन है या...?'
उसके प्रश्न के उत्तर में अंदर से आवाज आई- ' आज के दिन का तो है.'
यह सुनते ही कल्लू, जो मुझे लग रहा था कि वह काम पर चलने को तैयार है, पुन: अलाव के पास आकर बैठते हुए बोला- 'नहीं, साहिब आज हम नहीं जाएगा.'
'क्यों?'
क्यों क्या? बस नहीं जाएगा. ठण्ड के दिन में काम करना क्या जरूरी है?'
'अगर घर में राशन न होता तो?'
'तब और बात होती, अब आज के दिन का तो है न. उसके इस उत्तर को सुनकर मैं गरीबी के कारणों पर सोचते हुए नए मजदूर की तलाश में चल पड़ा.
यह सुनते ही कल्लू, जो मुझे लग रहा था कि वह काम पर चलने को तैयार है, पुन: अलाव के पास आकर बैठते हुए बोला- 'नहीं, साहिब आज हम नहीं जाएगा.'
'क्यों?'
क्यों क्या? बस नहीं जाएगा. ठण्ड के दिन में काम करना क्या जरूरी है?'
'अगर घर में राशन न होता तो?'
'तब और बात होती, अब आज के दिन का तो है न. उसके इस उत्तर को सुनकर मैं गरीबी के कारणों पर सोचते हुए नए मजदूर की तलाश में चल पड़ा.
सोच
बाल मजदूरी को रोकने के लिए जन-जागृति पैदा करने हेतु शहर भर में स्लोगन लिखने, बैनर लगाने का कार्य प्रगति पर था. विचारोत्तेजक और आकर्षक स्लोगन पढ़कर हर कोई प्रभावित हो रहा था. शहर भर में बैनर लगा देने से बाल मजदूरी रुक जाएगी, सब यही सोच रहे थे. दूसरी तरफ इन स्लोगनों का आशय समझने में असमर्थ नन्हें बालकों की सोच यथाशीघ्र सभी तयशुदा स्थानों पर स्लोगन लिखे बैनर लगाकर अपनी मजदूरी हासिल करने की थी.
आज का सच
अध्यापक ने बच्चों को ईमानदार लकडहारा कहानी याद करने के लिए दी थी. अगले दिन कहानी सुनी जा रही थी. सुनाते वक्त एक बच्चे की जवान लडखड़ाई." लकडहारा ईमानदार आदमी था", कहने की बजाए वह बोला-" ईमानदार आदमी लकडहारा था."
अध्यापक सोच रहा है कि यही तो आज के वक्त का सच है कि ईमानदार आदमी लकडहारा ही है, अर्थात मजदूर है, गरीब है, बेबस है, मामूली आदमी है और जो भ्रष्ट है वह मालिक है, शहंशाह है.
बहुत सार्थक सन्देश देती सुंदर लघु कथाएं..
जवाब देंहटाएंdilbag ji ko badhaee...bahut sashakt... samaj ko jhakjhorne wali l.k.di hai ... kam shabdon me bhavabhivyakti shreshth hai
जवाब देंहटाएंतीनों लघु कथाएं सार्थक सन्देश दे रही हैं ..
जवाब देंहटाएंbahut sundar laghukathayen.
जवाब देंहटाएंअच्छे सन्देश देती सुंदर लघुकथाएं..... सारी बहुत अच्छी लगीं
जवाब देंहटाएंविर्क जी की लघुकथाओं के कथ्य अच्छे हैं.
जवाब देंहटाएंसभी सुधीजनों का बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंachchi hai .
जवाब देंहटाएंrochak hai .
जवाब देंहटाएंsundar laghukathaye..
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder sandesh deti laghukathayen
जवाब देंहटाएंbadhai
rachana