15, श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला व उनकी लघुकथाएं:
पाठकों को बिना किसी भेदभाव के अच्छी लघुकथाओं व लघुकथाकारों से रूबरू कराने के क्रम में हम इस बार श्री त्रिलोक सिंह
ठकुरेला की लघुकथाएं उनके फोटो, परिचय के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है पाठकों को श्री ठकुरेला की लघुकथाओं व उनके बारे में जानकर अच्छा लगेगा।-किशोर श्रीवास्तव
परिचय : जन्म-तिथि -
01 - 10 -
1966
जन्म-स्थान- नगला मिश्रिया ( हाथरस )
पिता-
श्री खमानी सिंह
माता-
श्रीमती देवी
साहित्य प्रकाशन- 'नया सवेरा' ( बालगीत संग्रह
)
'आधुनिक हिंदी लघुकथाएं' ( सम्पादित लघुकथा संकलन ), 'कुंडलिया छंद के सात हस्ताक्षर' ( सम्पादित कुंडलिया संकलन
)
सम्मान / पुरस्कार- 1.आबू समाचार के दशाब्दी समारोह पर राजस्थान के माननीय
शिक्षामंत्री द्वारा सम्मानित 2. हिंदी साहित्य सम्मलेन,प्रयाग द्वारा 'वाग्विदान्वर सम्मान ' 3. पंजाब कला, साहित्य
अकादमी, जालंधर द्वारा 'विशेष अकादमी सम्मान ' 4. विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ गांधीनगर ( बिहार ) द्वारा 'विद्या
वाचस्पति' 5. राष्ट्रभाषा स्वाभिमान ट्रस्ट ( भारत ) गाज़ियाबाद द्वारा ' बाल साहित्य
भूषण’
विशिष्टता - कुंडलिया छंद के उन्नयन , विकास और पुनर्स्थापना हेतु कृतसंकल्प एवं समर्पित
सम्प्रति -
उत्तर पश्चिम रेलवे में इंजीनियर
निवास पता- बंगला संख्या-
99 , रेलवे चिकित्सालय
के सामने,
आबू रोड -
307026 ( राजस्थान ) दूरभाष / मोबाइल नंबर- 02974-221422 /
09460714267 / 07891857409
ई -मेल- trilokthakurela@gmail.com ,
trilokthakurela@yahoo.com
अंतर्ध्यान
वह गरीब किन्तु
ईमानदार था.ईश्वर में उसकी पूरी आस्था थी.परिवार में उसके अतिरिक्त माँ, पत्नी एवं दो
बच्चे थे. उसका घर बहुत छोटा था,अतः वे सभी बड़ी
असुविधापूर्वक घर में रहते थे. ईश्वर को उन
पर दया आई,
अतः ईश्वर ने प्रकट होकर कहा- " मैं तुम्हारी
आस्था से प्रसन्न हूँ, इसलिए तुम लोगों के साथ रहना चाहता हूँ ताकि
तुम्हारे सारे अभाव मिट
सकें."
परिवार में
ख़ुशी की लहर छा गई.क्योंकि घर में जगह कम थी, अतः उसने अर्थपूर्ण दृष्टि से माँ की ओर देखा. माँ
ने पुत्र का आशय समझा एवं ख़ुशी-ख़ुशी घर छोड़कर चल दी ताकि उसका पुत्र अपने
परिवार के साथ सुखपूर्वक रह सके.
" जहां माँ का
सम्मान नहीं हो,
वहां ईश्वर का वास कैसे हो सकता है.'' ईश्वर ने कहा और
अंतर्ध्यान हो
गया.
रीति -रिवाज
जगतपुरा के
पंडित गजानंद के दो बेटे शहर में सरकारी सेवा में थे. परिवार में सबकी सलाह से घर में हैंडपंप
लगाने का निर्णय लिया गया. कुए से पानी भरकर लाना अब उन्हें शान के खिलाफ लगने लगा था.
पड़ौसी गाँव से रतिराम एवं चेतराम को बुलाया
गया.दोनों दलित थे किन्तु आसपास के इलाके में वे
दोनों ही हैंडपंप लगाना जानते थे. दोनों ने सुबह से दोपहर तक मेहनत की एवं हैंडपंप लगाकर
तैयार कर दिया .हैंडपंप ने मीठा पानी देना शुरू कर दिया.
पंडित गजानंद द्वारा रतिराम और चेतराम को
मेहनताने के साथ-साथ दोपहर का खाना भी दिया
गया.खाना खाने के बाद रतिराम एवं चेतराम पानी पीने के लिए जब हैंडपंप की ओर बढ़े तो पंडित
गजानंद
ने उन्हें रोक दिया. बोले-'' अरे भाई ! माना तुम कोई काम जानते हो,
तो क्या सारे
रीति-रिवाज भुला दोगे.जरा जाति का तो ख़याल रखो.यह ब्राह्मणों का हैंडपंप है.''
उन्होंने लड़के
को आवाज़ दी-''
राजेश, इन दोनों को लोटे से पानी तो पिला.''
रतिराम और चेतराम ने एक दूसरे की ओर देखा,जैसे पूछ रहे हों- यह कैसा रीति-रिवाज है.
आस्था
पुरुषोत्तम जी
घोर नास्तिक हैं. ईश्वर में उनका कतई विश्वास नहीं है. एक दिन कार्य से
उनके घर पहुंचा तो देखा की वहां सत्यनारायण जी की कथा हो रही है. पुरुषोत्तम जी अपनी पत्नी
के साथ बरते कथा श्रवण कर रहे हैं. कथा के उपरान्त हवन और आरती में भी. उनका समर्पण
-भाव देखते बनता था.
कथा पूरी होने के बाद मैंने उनसे पूछ लिया-'' पुरुषोत्तम जी, आप तो अनीश्वरवादी है?''
' हाँ '' उन्होंने उत्तर दिया.
मैंने पूछा- ''अभी थोड़ी देर पहले जो मैंने देखा,वह क्या था?''
आस्था है. उससे
प्रेम है. क्या हम अपनों की ख़ुशी के लिए वह नहीं कर सकते जो उन्हें अच्छा लगे?''