पाठकों को बिना किसी भेदभाव के अच्छी लघुकथाओं व लघुकथाकारों से रूबरू कराने के क्रम में हम इस बार प्रसिद्ध साहित्यकार श्री पी. दयाल श्रीवास्तव की लघुकथाएं उनके फोटो, परिचय के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है पाठकों को श्री पी. दयाल की लघुकथाओं व उनके बारे में जानकर अच्छा लगेगा।-किशोर श्रीवास्तव
परिचय:
पी.दयाल श्रीवास्तव/प्रभुदयाल श्रीवास्तव
जन्म: 4 अगस्त 1944 धरमपुरा दमोह {म.प्र.]
शिक्षा: वैद्युत यांत्रिकी में पत्रोपाधि
व्यवसाय: विद्युत मंडल की सेवा से सेवा निवृत कार्यपालन यंत्री
लेखन : विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं
लेखन : विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं
लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए, बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन. लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन, दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी, बिजनौर टाइम्स,दैनिक पायलटए वं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|
पत्रिकाओं हम सब साथ साथ, शुभ तारिका, न्यामती, कादंबिनी, मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|
कृतियां: 1 दूसरी लाइन [व्यंग्य संग्रह]शैवाल प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशि 2 बचपन गीत सुनाता चल [बाल गीत संग्रह] बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र भोपाल से प्रकाशित 3 बचपन छलके छल छल छल[बाल गीत संग्रह]बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र भोपाल से प्रकाशित.
प्रसारण: आकाशवाणी छिंदवाड़ा से बालगीतों,बुंदेली लघु कथाओं एवं जीवन वृत पर परिचर्चा का प्रसारण.
सम्मान: राष्ट्रीय राज भाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा "भारती रत्न "एवं "भारती भूषण सम्मान", श्रीमती सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान वैदिक क्रांति देहरादून एवं हम सब साथ साथ पत्रिका दिल्ली द्वारा "लाइफ एचीवमेंट एवार्ड", भारतीय राष्ट्र भाषा सम्मेलन झाँसी द्वारा" हिंदी सेवी सम्मान", शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम होशंगाबाद द्वारा"व्यंग्य वैभव सम्मान", युग साहित्य मानस गुन्तकुल आंध्रप्रदेश द्वारा काव्य सम्मान.
विदेश यात्राएं: थाईलेंड बैंकाक सृजन सम्मान सृजन गाथा द्वारा बैंकाक में, विभूतिनारायण राय द्वारा बाल पुस्तकों का विमोचन
ई पत्रिकाओं में: अनुभुति, साहित्य शिल्पी, सृजन गाथा, लेखनी, रचनाकार, खबर इंडिया, प्रवक्ता इत्यादि में सतत प्रकाशन.
प्रसारण: आकाशवाणी छिंदवाड़ा से बालगीतों,बुंदेली लघु कथाओं एवं जीवन वृत पर परिचर्चा का प्रसारण.
सम्मान: राष्ट्रीय राज भाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा "भारती रत्न "एवं "भारती भूषण सम्मान", श्रीमती सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान वैदिक क्रांति देहरादून एवं हम सब साथ साथ पत्रिका दिल्ली द्वारा "लाइफ एचीवमेंट एवार्ड", भारतीय राष्ट्र भाषा सम्मेलन झाँसी द्वारा" हिंदी सेवी सम्मान", शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम होशंगाबाद द्वारा"व्यंग्य वैभव सम्मान", युग साहित्य मानस गुन्तकुल आंध्रप्रदेश द्वारा काव्य सम्मान.
विदेश यात्राएं: थाईलेंड बैंकाक सृजन सम्मान सृजन गाथा द्वारा बैंकाक में, विभूतिनारायण राय द्वारा बाल पुस्तकों का विमोचन
ई पत्रिकाओं में: अनुभुति, साहित्य शिल्पी, सृजन गाथा, लेखनी, रचनाकार, खबर इंडिया, प्रवक्ता इत्यादि में सतत प्रकाशन.
संप्रति: सेवा निवृत कार्यपालन यंत्री म. प्र.विद्युत मंडल छिंदवाड़ा से
संपर्क: 12, शिवम सुंदरम नगर छिंदवाड़ा-480001 [ म.प्र.]
फोन नं. 07162 247632 मोबाइल नं. 9713355846
Email- pdayal_shrivastava@yahoo.com
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लघुकथाएं:
सिद्धांत का सवाल
"गली गली में शोर है कल्लू बब्बा चोर है|'
"लुच्चा गुंडा बेईमान कल्लूजी की है पहचान|"
जोरदार नारों की आवाज सुनकर मैं घर से बाहर निकल आया | मैंने देखा कि मेरा एक परिचित सा व्यक्ति जोर-जोर से नारेबाजी कर रहा था और कोई चालीस पचास लोगों का हज़ूम उसके पीछे चलता हुआ इन्हीं नारों को लयबद्ध होकर दुहरा रहा था |
मैंने दिमाग पर जोर डाला तो याद आया कि वह टंटू पंडा था | कभी मेरे साथ पढ़ता था आठवीं में | पढ़ने में बहुत कमजोर था | मैं नौवीं में चला गया वह फेल होकर आठवीं में ही रह गया | फिर मैं दसवीं में पहुँच गया वह आठवीं की ही शोभा बढ़ाता रहा | इसके बाद उसका पता नहीं लगा कि वह कहां गया | हां इतना जरूर स्मरण है कि वह स्कूल में भी नारे ही लगवाता था | पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के जलूस में वह सबसे आगे रहता और नारे लगवाता | वह कहता "महात्मा गांधी की" और हम लोग कहते "जय" वह फिर चिल्लाता "स्वतंत्रता दिवस " हम लोग कहते" अमर रहे अमर रहे |" इत्यादि |
खैर चुनाव का मौसम है और ऐसी नारेबाजी होती ही रहती है ऐसा सोचकर मैने कोई ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लग गया |
दूसरे दिन फिर कुछ लोग जलूस की शक्ल में नारेबाजी करते निकले |
"घर घर से आई आवाज़ कल्लू बब्बा जिंदाबाद"
"जब तक सूरज चांद रहेगा कल्लूजी का नाम रहेगा"
जलूस की अगुवाई आज भी टंटू पंडा ही कर रहा था | मुझे आश्चर्य हुआ | मैंने टंटू को बुलाकर पूछा, "कल तो आप कल्लूजी के विरॊध में नारे लगा रहे थे, आज उनके पक्ष में कैसे?
टंटूजी नाराज हो गये, कहने लगे, "इतना भी नहीं जानते मैं सिद्धांतों से समझोता नहीं करता | चाहे धरती फट जाये चाहे आसमान गिर पड़े मेरे सिद्धांत अटल हैं |"
"जरा खुलकर बतायें मैं समझा नहीं" मैने पूछा |
"जो रुपये ज्यादा दे उसके पक्ष में बोलना ही मेरा सिद्धांत है |"
"मगर कल और आज में क्या अंतर आया" मैँने पूछा |
"बब्बा ने अपने विरोधी से चार गुना ज्यादा पैसे दिये हैं आज | कल नंदू भैया ने पांच सौ रुपये दिये थे इससे बब्बा के विरोध में नारे लगा रहे थे | अब बब्बा ने दो हज़ार रुपये दिये हैं तो उनके पक्ष में नारेबाजी करेंगे कि नहीं? सिद्धांत का मामला बनता है कि नहीं? वह मॆरी आंखों में आंखें डलकर जैसे मुझसे इस प्रश्न का जबाब चाह रहा था | मैं चुप था, क्या जबाब देता सिद्धांतवादियों के सिद्धांत के सवाल का |
"लुच्चा गुंडा बेईमान कल्लूजी की है पहचान|"
जोरदार नारों की आवाज सुनकर मैं घर से बाहर निकल आया | मैंने देखा कि मेरा एक परिचित सा व्यक्ति जोर-जोर से नारेबाजी कर रहा था और कोई चालीस पचास लोगों का हज़ूम उसके पीछे चलता हुआ इन्हीं नारों को लयबद्ध होकर दुहरा रहा था |
मैंने दिमाग पर जोर डाला तो याद आया कि वह टंटू पंडा था | कभी मेरे साथ पढ़ता था आठवीं में | पढ़ने में बहुत कमजोर था | मैं नौवीं में चला गया वह फेल होकर आठवीं में ही रह गया | फिर मैं दसवीं में पहुँच गया वह आठवीं की ही शोभा बढ़ाता रहा | इसके बाद उसका पता नहीं लगा कि वह कहां गया | हां इतना जरूर स्मरण है कि वह स्कूल में भी नारे ही लगवाता था | पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के जलूस में वह सबसे आगे रहता और नारे लगवाता | वह कहता "महात्मा गांधी की" और हम लोग कहते "जय" वह फिर चिल्लाता "स्वतंत्रता दिवस " हम लोग कहते" अमर रहे अमर रहे |" इत्यादि |
खैर चुनाव का मौसम है और ऐसी नारेबाजी होती ही रहती है ऐसा सोचकर मैने कोई ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लग गया |
दूसरे दिन फिर कुछ लोग जलूस की शक्ल में नारेबाजी करते निकले |
"घर घर से आई आवाज़ कल्लू बब्बा जिंदाबाद"
"जब तक सूरज चांद रहेगा कल्लूजी का नाम रहेगा"
जलूस की अगुवाई आज भी टंटू पंडा ही कर रहा था | मुझे आश्चर्य हुआ | मैंने टंटू को बुलाकर पूछा, "कल तो आप कल्लूजी के विरॊध में नारे लगा रहे थे, आज उनके पक्ष में कैसे?
टंटूजी नाराज हो गये, कहने लगे, "इतना भी नहीं जानते मैं सिद्धांतों से समझोता नहीं करता | चाहे धरती फट जाये चाहे आसमान गिर पड़े मेरे सिद्धांत अटल हैं |"
"जरा खुलकर बतायें मैं समझा नहीं" मैने पूछा |
"जो रुपये ज्यादा दे उसके पक्ष में बोलना ही मेरा सिद्धांत है |"
"मगर कल और आज में क्या अंतर आया" मैँने पूछा |
"बब्बा ने अपने विरोधी से चार गुना ज्यादा पैसे दिये हैं आज | कल नंदू भैया ने पांच सौ रुपये दिये थे इससे बब्बा के विरोध में नारे लगा रहे थे | अब बब्बा ने दो हज़ार रुपये दिये हैं तो उनके पक्ष में नारेबाजी करेंगे कि नहीं? सिद्धांत का मामला बनता है कि नहीं? वह मॆरी आंखों में आंखें डलकर जैसे मुझसे इस प्रश्न का जबाब चाह रहा था | मैं चुप था, क्या जबाब देता सिद्धांतवादियों के सिद्धांत के सवाल का |
बहादुर बेटा
दरवाजे पर ठक ठक की आवाज ने रामलाल को उठने को मजबूर कर दिया पत्नी पड़ौस में चौका बर्तन का काम करने गई थी | उठकर दरवाजे तक आते-आते बाहर कोलाहल तेज सुनाई पड़ने लगा | रामलाल ने कौतूहलवश दरवाजा खोला तो सामने पड़ौस के ही दो तीन लोगों को खड़ा पाया | पीछे चालीस पचास लोगों का हज़ूम गमगीन मुद्रा में नज़र आ रहा था |
रामलाल ने प्रश्नवाचक नज़रों से देखा | एकदम से किसी ने कोई जबाब नहीं दिया| रामलाल सकपका गया | "क्या बात है भैया?" उसने सामने खड़े एक परिचित पड़ौसी से पूछा | " क्या हुआ मेरे बेटे को?"
"मर गया गोली से, पुलिस की | थाना घेर डाला था लोगों ने, तुम्हारा बेटा भी था, थाने में आग लगा रहे थे, पुलिस ने भूंज दिया |"
"अच्छा हुआ निकम्मा था आवारा कहीं का, क्या वह मर गया? शराब के नशे में रामलाल बुदबुदाया | बेटे की मौत की खबर को ऐसे सुना जैसे कोई साधारण सी बात हो | वापस आकर फिर खटिया पर लुड़क गया |
दूसरे दिन दोपहर फिर दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आई |
"अब क्या हो गया ,चैन से सोने भी नहीं देते साले" रामलाल झुँझलाकर बड़बड़ाया और दरवाजा खोल दिया "क्यों तंग करते हो , अब क्या हो.... ? प्रश्न पूरा होने से पहले ही एक आदमी बोल पड़ा, ....".एस. डी. एम. साहब आये हैं, मुआबजे का चेक है तुम्हारे लड़के की मृत्यु होने पर, सरकार ने तुम्हें दिया है, पूरे पच्चीस हज़ार का है, मरने वाले को सरकार देती है, उसके घावालों को देती है |"
रामलाल तो जैसे हक्का बक्का रह गया "पच्चीस हज़ार मुझे" वह खुशी से पागल सा हुआ जा रहा था | बड़बड़ाने लगा जैसे हिसाब लगा रहा हो कि इतने पैसे में वह कितने दिन दारू पी सकेगा | वह बेटे को दुआयें देने लगा, "ठीक वक्त पर मरा, दारू पीने के लिये घर में कुछ भी नहीं था | निकम्मा साला ,मरते-मरते ही सही बाप की आत्मा को तृप्त तो कर ही गया |" उसके मुँह पर हल्की सी मुस्कान आई और आँखें गीली हो गईं |
रामलाल ने ओंठों पर जीभ फेरी और चल पड़ा दारू के पवित्र स्थल की ओर, सूखे ओंठों से वह बुदबुदा रहा था, "सरकार जिंदा आदमी को कहां नौकरी देती है किंतु बहादुरी से मरने पर पैसा देती है, थाना फूंको तो पैसा मिलता है, बहादुर था मेरा बेटा |"
दुआएं
लाड़ो चाची सुबह सुबह ही चिल्ला रहीं थीं"उसका सत्यनाश हो,वह शरीफ आदमी बन जाये,उसका पूरा खानदान ईमानदार हो जाये,आंखें फूटी थीं कि इतना बड़ा लड़का नहीं दिखा"
"चाची क्या हुआ,क्यों सुबह सुबह गालियां दे रहीं हो |"
"मेरे मुन्ने को किसी ने सायकिल से ठोकर मार दी |"
"नहीं चाची मुन्ना तो पत्थर की ठोकर खाकर गिरा था, सायकिल वाले ने तो उसके कंधे पर उसका गिरा हुआ बस्ता उठाकर टांगा था |"
"अच्छा"अब चाची उसे दुआयें दे रहीं थीं, "भगवान उसका भला करे, वह सड़क छाप नेता बन जाये, मुहल्ले का दादा बन जाये |"
समय का कैसा फेर |
हवा का रुख
"अंकल हमें हनु से मिलना है |" एक बोला |
"हमें हनु से गुड मार्निंग करना है |' दूसरा चहका |
"हनु हमारा डियर डियर, वेरी डियर फ्रेंड है |' तीस्ररा इठलाकर बोला
फिर दरवाजे के पास आकर बाहर झांकते हुये और हाथ हिलाते हुये सब चिल्लाने लगे|
" हाय हनु"
"गुड मार्निंग हनु"
"टेक केयर हनु"
"लौटकर फिर मिलेंगे हनु"
मैंने खिड़की से बाहर झाँककर देखा, बस शहर के एक प्रसिद्ध हनुमान मंदिर के सामने से गुजर रही थी और वे लड़के मंदिर की तरफ हाथ हिला हिलाकर उक्त संबोधन कर रहे थे |
मैं सोच रहा था हवा का रुख कितना बदल गया है |
apki rachnaye prernadayak hai, shubhkamna
जवाब देंहटाएंविसंगतियों पर चोट करती लघुकथाएं हैं. परन्तु तीसरी में कृत्रिमता सी लग रही है.
जवाब देंहटाएंभौतिकता की अंधी दौड़ और अर्थ प्रधान होते समाज में बहुबलियों,गुंडों,धनिकों एवं सड़क छाप लोगों का बोलबाला है|यह तो भारत का लोकमानस है जो अभी भी मानव मूल्यों की रक्षा करते हुये अपनी परम्पराओं का निर्वहन कर समाज को पतनोन्मुखी होने से बचाने का प्रयास करता हूआ दिख जाता है|"दुआयें" लघुकथा में इसी तथ्य को इंगित कर कल्पना मात्र की गई है कि यदि वर्तमान राजनैतिक परिस्थियां आगे भी यथावत जारी रहीं और नैतिक पतन इसी तरह जारी रहा तो क्या इसी तरह की दुआयें बुजुर्गों के मुंह से निकलना अपेक्षित नहीं होगा|लघुकथा की कृत्रिमता भविष्य के यथार्थ को इंगित करती है|ईमानदारी और सचाई पश्चिमोन्मुखी समाज में तभी संभव है जब हम अपनी ऋषि परंपराओं को फिर से अंगीकार कर लें जो अब असंभव दिखाई देता है| प्रभुदयाल
हटाएंThanks to Kishore jifor publishing my laghukathyan
जवाब देंहटाएंPrabhudayal
किशोरजी का लघुकथाकारों की रचनाओं को एक साथ प्रकाशित कर प्रोत्साहित करने का प्रयास सराहनीय है|कम से कम मेरे ऊपर तो विशेष कृपा रही है|लघुकथाओं के साथ प्यारे प्यारे काऱ्टून सोने में सुगंध वाला काम कर रहे हैं|किशोरजी को बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रभुदयाल श्रीवास्तव
Achchi lagin laghukathayen ....
जवाब देंहटाएंहम सब साथ साथ के ईमेल पर प्राप्त कुछ अन्य मेल...
जवाब देंहटाएंHarkirat haqeer
harkirathaqeer@gmail.com
Jan 25
shukariyaa kishor ji , jarur bhejeinge .....
naye blog ki shuruaat ke liye hardik shubhkamnayein ......
Rachana Srivastava
rach_anvi@yahoo.com
likhne ki koshish ki pr ja nahi raha hai aapka abhar hoga yadi aap ye laga den
dhnyavad
rachana
ek se badh kar ek laghu kathayen .smy ki badalti hawa ka khub chitran hai .bahut hi barik vishleshan hai bahut bahut badhai
saader
rachana
Rachanajii ko bahut dhanyavad apni pratikrya dene ke liye
हटाएंPrabhudayal
अच्छी लधुकथाएँ है- हाय हन , हमारे बच्चे भी न। क्या कहे इनकी मस्ती को।
जवाब देंहटाएंगोलीबारी में मरने पर पच्चीस हजार रुपये का चेक सरकार पर सही व्यंग है- जिन्दो को नौकरी नहीं मरने पर मेहरबानी।
नारो के लिए पैसे- अशिक्षितों के पास रोजगार का साधन मात्र है।
p.dayal ji ki laghukathayen behad spashat,marmik v saty ko udghatit karti hai | aaj ke andhe yug me galat sidhant
जवाब देंहटाएंhi panap rahe hai | duaaen me girte huae netik mulyon ki avdharna ko vishleshit kiya hai ..sundar sanyojan me ulatbansi
.sabhi l.k. jhakjhorne ki purjor koshish hai lekhak ki . lekhak ko badhaee.. itne saral shabdon me vyanjnatmak abhivyakti pradan ki . kishor ji bhi badhaee ke patr hai jo is blog ke jariye shreshath l.k. ham tak pahunchate hai |
आपने लघुकथाओं को सराहा धन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रभुदयाल श्रीवास्तव
ये लघु कथायें बहुत ही अच्छी लगीं
जवाब देंहटाएंभानु गुमास्ता
nice
जवाब देंहटाएं